किसी घने जंगल में एक छोटा सा खरगोश रहता था। वह अपनी सादगी भरी जिंदगी से बहुत खुश था। उसका मानना था कि खुशी का राज़ यही है कि जो है, उसमें संतोष किया जाए। लेकिन एक दिन उसने एक तितली को देखा। तितली के रंग-बिरंगे पंख देखकर उसे लगा, "काश मैं भी इतना सुंदर होता! तितली को देखकर तो सभी खुश हो जाते हैं।"
खरगोश ने तितली से पूछा, "तुम्हारे पास इतने सुंदर पंख हैं। तुम तो सबसे ज्यादा खुश होती होगी, है ना?"
तितली ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "मैं खुश थी, जब तक मैंने मोर को नहीं देखा था। मोर के जैसे रंग और उसकी खूबसूरती तो मुझसे कहीं ज्यादा है।"
यह सुनकर खरगोश ने मोर से मिलने की ठान ली। वह कई पेड़ों और झाड़ियों के पार जाकर आखिरकार मोर के पास पहुंचा। मोर के आस-पास लोग उसकी तस्वीरें खींच रहे थे और उसे निहार रहे थे। खरगोश को यकीन हो गया कि मोर सबसे खुश होगा।
जंगल की सच्ची खुशी