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रमज़ान की मीठा सफ़र

रमज़ान के महीने में एक छोटे लड़के अली का सफर और उसकी रोज़ा रखने की कहानी। इस कहानी में अली अपने दादा से सीखता है कि रमज़ान सिर्फ भूख का सब्र नहीं, बल्कि दूसरों की मदद करना और अपने दिल को साफ करना भी है। एक प्यारी और प्रेरक कहानी जो बच्चों को दोस्ती, सब्र, और इंसानियत के बारे में सिखाती है।"
5 मार्च 2025 by
रमज़ान की मीठा सफ़र
ImtiyazSheikh

"रमज़ान की मीठा सफ़र"


एक दफा का जिक्र है, एक छोटी सी बस्ती में एक लड़का रहता था जिसका नाम अली था। अली बहुत अच्छा बच्चा था, लेकिन एक चीज़ थी जो उसे थोड़ी परेशान करती थी- रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना। उसे लगा था कि रोजा रखना काफी मुश्किल है और वह सोचता था कि कैसे अपने दोस्तों की तरह इस माहीने को एन्जॉय करें।


एक दिन अली अपने दादा के साथ मस्जिद जा रहा था। दादा ने देखा के अली का चेहरा उदास था। दादा ने प्यार से उससे पूछा, "क्या बात है बेटा? तुम इतने उदास क्यों हो?"


अली ने थोड़ा शर्माते हुए कहा, "दादा, मुझे लगता है के रोजा रखना बहुत मुश्किल है। मैं अपने दोस्तों को देखता हूं, वो सब खाना खाते हैं, खेलते हैं, और मैं बस खाली पेट रहता हूं। कैसे करूं ये रोजा?"


दादा ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, रमज़ान सिर्फ खाना खाने का नाम नहीं है। ये एक ऐसा सफर का हिसाब है जो हमें सब्र, शुक्र और इंसानियत सिखाता है।"


अली ने सोचा और दादा से पूछा, "दादा, ये सब सब्र, शुक्र, और इंसानियत कैसे समझ सकते हैं?"


दादा ने जवाब दिया, "अली बेटा, जब तुम रोजा रखते हो, तुम अपने अंदर का सब्र और ताकत देखते हो। जब तुम्हारे पेट में भूख होती है, तब तुम समझते हो के दूसरे लोग जो खाना नहीं खाते, उन्हें कितनी मुश्किल होती होगी। रमजान हमें दूसरों की मदद करने और उनका ख्याल रखने का मोका देता है।”


अली को दादा की बात समझ आई। अगले दिन से, उसने रोज़ा रखना शुरू किया, और जैसे-जैसे दिन गुज़रते गए, अली को लगा के ये सफर बहुत ख़ूबसूरत है। उसने देखा के जब वो खाना खाता, तो उसके दिल में एक सुकून होता। उसने अपने दोस्तों को भी बताया, "रोजा रखना सिर्फ भूख का सब्र करना नहीं, बल्कि अपने दिल को साफ करना भी है।"


रमज़ान के महीने में, अली ने अपनी मसरूफ़ियत में से वक़्त निकाला और अपने ग़रीब दोस्तों और परोसी आंटी-अंकल की मदद की। कभी वो उनको पानी देता, कभी उनकी छत पर सफाई करता। उसने ये सब किया और उसे पता चला के असली सुकून दूसरों की मदद करने में है।


एक दिन, मस्जिद में एक खास इफ्तार पार्टी राखी गई थी, जिसमें सब लोग मिलकर रोजा खोलते हैं। अली अपने दादा के साथ गया। वहां पर उसने देखा के बहुत से लोग जो गरीब थे, वो भी इफ्तार में शामिल थे। अली को पता चला के रमज़ान का असली मतलब है एक दूसरे की मदद करना, सब्र रखना, और अल्लाह का शुक्र अदा करना।


और इस तरह, अली ने सीखा के रमज़ान का हर दिन एक नई उम्मीद और एक नई दुआ के साथ गुज़रना चाहिए। वो जान गया के रमज़ान एक ऐसा महीना है, जिसमें हम अपने सब से खूबसूरत जज़्बात, अपने सब्र और अपनी इंसानियत को सब के साथ बांट सकते हैं।



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